Friday, December 25, 2009

वक्त आ गया है एस्बेस्टस बैन करने का !

Time Has Come for Asbestos Ban!

Does India too needs to ban asbestos? Several countries of the world have banned asbestos and very soon UN headquarters would become asbestos free. Some 2 billion dollars are being spent for the makeover of the UN headquarters which entails complete removal of asbetsos by 2014.

World over some 40 countries along with WTO has accepted that safe and controlled asbestos use of asbestos is not possible. Based on US and European studies, it is estimated that every day 30 people are dying of asbestos related diseases. The only way to save oneself is to impose ban on it.

वक्त आ गया है एस्बेस्टस बैन करने का !

नई दिल्ली।। क्या भारत को भी अब एस्बेस्टस पर बैन लगा लेना चाहिए? दुनिया भर के कई देशों ने जहां एस्बेस्टस पर बैन लगाया है वहीं अब न्यू यॉर्क में यूनाइटेड नैशंस का हेडक्वाटर भी जल्द ही एस्बेस्टस फ्री हो जाएगा। 2 बिलियन डॉलर की राशि से हेडक्वाटर का मेकओवर किया जा रहा है इसमें वहां इस्तेमाल हुए एस्बेस्टस को भी पूरी तरह हटा दिया जाएगा। इस रिनोवेशन प्रोजेक्ट के 2014 तक पूरा होने की उम्मीद है।

दुनिया भर के करीब 40 देशों सहित वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन ने यह माना है कि एस्बेस्टस का सुरक्षित और नियंत्रित इस्तेमाल मुमकिन नहीं है। अमेरिकन और यूरोपियन स्टडी के अनुसार हर रोज एस्बेस्टस से होने वाली बीमारी के कारण 30 लोगों की मौत हो रही है। इससे बचाव का एकमात्र उपाय इस पर बैन ही है। हमारे देश में ज्यादातर सरकारी इमारतें, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, स्कूल की छत एस्बेस्टस की बनी हुई है। वॉटर सप्लाई, सीवेज, ड्रेनेज के लिए इस्तेमाल होने वाले पाइप, पैकेजिंग मटीरियल, गाड़ियों के ब्रेक क्लच, ब्रेक शू सहित हजारों चीजों में एस्बेस्टस का इस्तेमाल हो रहा है। कई रिसर्च और सरकारी अध्ययनों से साबित हुआ है कि एस्बेस्टस से लंग कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। एस्बेस्टस का एक भी फाइबर अगर फेफड़ों तक पहुंच जाए, तो इससे हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती।

2003 में तत्कालीन स्वास्थ्य और संसदीय कार्यमंत्री सुषमा स्वराज ने संसद को बताया कि अहमदाबाद स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ऑक्युपेशनल हेल्थ की स्टडी से यह साफ है कि किसी भी प्रकार के एस्बेस्टस के लंबे समय तक संपर्क में रहने से एस्बेस्टोसिस, लंग कैंसर और मीसोथीलियोमा का खतरा हो सकता है।

अमेरिका के जाने माने पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. अर्थुर फ्रेंक का कहना है कि भारत में एस्बेस्टस डिजीज इसलिए दिखाई नहीं देती क्योंकि यहां का पब्लिक हेल्थ सिस्टम एस्बेस्टस संबंधी बीमारियों को रेकॉर्ड नहीं करता। वह कहते हैं कि एस्बेस्टस के विकल्प इस्तेमाल किए जाने चाहिए जो पहले से ही मौजूद हैं।

टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉ. जॉर्ज करिमुंडेकल ने एस्बेस्टस से होने वाली बीमारी की भयावहता का जिक्र करते हुए बताया कि अब तक उनके हॉस्पिटल में मीसोथीलियोमा और लंग कैंसर के 127 मरीजों की पहचान हुई और इलाज किया गया। वह कहते हैं कि उनके हॉस्पिटल में ही हर साल 5-6 केस एस्बेस्टस संबंधी बीमारियों के आते हैं और लंग कैंसर के कुल केस में 1 परसेंट मीसोथीलियोमा के होते हैं जो कि एस्बेस्टस से होने वाली एक लाइलाज बीमारी है।

यह भी गौर करने वाली बात है कि 36 केसों में से केवल 3 केस में ही पीड़ित एस्बेस्टस इंडस्ट्री से जुड़े हुए थे यानी सेकंड एक्सपोजर में भी बीमारी के पूरे चांस हैं। सियोल नैशनल यूनिवर्सिटी के डॉ. दोमयुंग पेक (Domyung Paek) ने बताया कि साउथ कोरिया ने 2007 में एस्बेस्टस बैन कर दिया था जो इस साल से प्रभाव में आया है और अभी एस्बेस्टस कंपनसेशन लॉ पास करने की प्रक्रिया चल रही है।

24 Dec 2009, 1724 hrs IST,नवभारत टाइम्स
पूनम पाण्डे
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5374456.cms

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